किसी ने सोचा ना था कि महान सभ्यताएं इस तरह बेवस हो जाएगी । राष्ट्रों के अहंकार कुछ यूं कर ध्वस्त होते नजर आएंगे । बड़े बड़े देश जो आए दिन छोटे देशों को हड़काते नजर आते थे आज स्वयं को इतने निरीह पाएंगे । मनुष्य का मिथ्या अहंकार ही उसके विनाश का कारण बनेगा ये किसने सोचा होगा । स्वयं को ताकतवर सिद्ध करने की अंधी होड़ इस तरह मृत्यु के कगार पर पहुंचा देगी मानवीय सभ्यता को किसने सोचा होगा ।
अपने छात्र जीवन में मैंने अर्थशास्त्र में दो अर्थशास्त्रियों सिद्धांत पड़े एप्लाइड इकोनॉमिक्स में । एडम स्मिथ का सिद्धांत और मार्शल का सिद्धांत । इन्होंने जनसंख्या को लेकर जो वक्तव्य दिए वे स्मृति में अा गए अचानक । जब मनुष्य जनसख्या वृद्धि को नियंत्रित नहीं करता तो प्रकृति करती है उस पर नियंत्रण । लेकिन प्रकृति का नियंत्रण भयावह होता है । आज हमारे सामने वहीं दृश्य उपस्थित हुआ जो कभी पढ़ा था । प्रकृति को लगातार दोहन ।दोहन भी नहीं बल्कि वलात उपयोग । विज्ञान की हठधर्मिता आज विनाश को निमंत्रण देती प्रतीत हो रही । हमारा भारतीय मनीषा हमेशा ही प्रकृति से मिलकर और स्वयं को प्रकृतिस्थ कर जीवन जीने की प्रेरणा देता है , प्रकृति को विनाश कर नहीं । आज मानव दिन प्रतिदिन प्रकृति के विद्यमान सारे मानकों को ध्वस्त करता हुआ स्वयं का विस्तार करता जा रहा है उसी का परिणाम है जो हमें आज एक विश्वव्यापी आपदा के रूप में भुगतना पड़ रहा है । इस विपत्ति का कारण बाहरी तो है ही साथ ही हमारे आंतरिक विचार भी इस आपदा को लाने के जिम्मेदार है । आज हर व्यक्ति ईर्ष्या , द्वेष , घृणा , विध्वंस की मानसिकता को लिए जी रहा है जब ऐसे विचार समूह और राष्ट्र तक विस्तार पा जाते है तो प्रकृति में नकारात्मक ऊर्जा का वेग प्रबल हो जाता है और दैवीय या धनात्मक ऊर्जा अपेक्षाकृत कमजोर पड़ने लगती है । आज जरूरत है हर भारतीय अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा की अभिवृद्धि करे और स्वयं को दैवीय ऊर्जा से परिपूर्ण कर ले जब ये दैवीय ऊर्जा समूह से राष्ट्र व्यापी स्तर तक चली जाएगी तो निश्चित मानिए हम किसी भी नकारात्मक आसुरी ऊर्जा को नष्ट कर सकते है ।
-जयति अवधूतेश्वर
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