पवित्र नींव: प्राचीन वास्तुशास्त्र में गर्भ-विन्यास की दिव्यता:

प्राचीन गर्भ-विन्यास विधि से जानें नींव निर्माण का पवित्र और वैज्ञानिक रहस्य, जिससे होता है शक्ति का संचार।
aadri astrology blog image

भूमिका

प्राचीन भारत में मंदिर या आवास निर्माण केवल ईंट-पत्थर का कार्य नहीं था — यह एक पवित्र अनुष्ठान था। निर्माण की प्रक्रिया की शुरुआत होती थी "गर्भ-विन्यास" से, जो कि नींव डालने की एक आध्यात्मिक व वैज्ञानिक विधि है। मानसार ग्रंथ के बारहवें अध्याय में इस पवित्र प्रक्रिया का अत्यंत विस्तृत वर्णन किया गया है।


गर्भ-विन्यास का महत्व

गर्भ-विन्यास का अर्थ है भवन की गर्भभूमि तैयार करना — अर्थात्, वह स्थान जहाँ देवता या ऊर्जा का वास होगा। यदि नींव पूर्ण रीति से और शुभ वस्तुओं से भरी हो, तो वह शुभ और फलदायी मानी जाती है। यदि वस्तुएँ अधूरी हों, तो अशुभ और अपूर्ण मानी जाती है।


नींव की खुदाई और भूमि भराई

नींव की गहराई भवन के आधार (plinth) के बराबर होती है। जल यदि मिले तो उसे हटाया जाता है और फिर उसमें सात प्रकार की पवित्र मिट्टियाँ डाली जाती हैं — नदी, पर्वत, चींटी के बिल, गाय के खुर के पास की भूमि आदि।

चारों दिशाओं में अलग-अलग जड़ें और पौधे रखे जाते हैं – जैसे मध्य में श्वेत कमल की जड़, पूर्व में नील कमल की, दक्षिण में जल-शय्या की, पश्चिम में सुगंधित घास और उत्तर में गुञ्जा।


अन्न, रत्न, धातु और देव-चिन्हों का संयोजन

इसके बाद आठ प्रकार के पवित्र अन्न — जैसे शाली, व्रीहि, तिल, मूँग आदि — विशिष्ट दिशाओं में रखे जाते हैं। साथ ही, नींव में सोना, चाँदी, तांबा, लोहा और बहुमूल्य रत्नों को विशेष गणनात्मक ग्रिड में रखा जाता है जैसे 25, 49 या 81 खानों की योजना (उपपीठ या परमशायिक)।

प्रत्येक खंड में एक देवता का वास और प्रतिनिधित्व रहता है, जिनके लिए विशेष वस्तुएँ निर्धारित की गई हैं — जैसे विष्णु का चक्र, शिव का त्रिशूल, ब्रह्मा का कमंडल।


वेद मंत्रों के साथ पूजन विधि

फिर स्थल को पंचगव्य से शुद्ध किया जाता है और वास्तु देवता को जगाने हेतु वेद मंत्रों, पुष्प, चंदन, धूप, दीप, अक्षत आदि से पूजन होता है।

मुख्य मंत्र उच्चारित होता है:
"ओं वास्तो वर्धस्व, नमः।"
— हे वास्तु देव! यह नींव फलदायी हो।


वर्णानुसार एवं देवता अनुसार नींव में भिन्नता

मंदिरों की नींव में संबंधित देवता के चिन्ह जैसे विष्णु के लिए चक्र, शंख, गरुड़ आदि रखे जाते हैं।
घर की नींव भी वर्ण आधारित होती है:

  • ब्राह्मण: ओम्, यज्ञोपवीत, ब्रह्मा की मूर्ति

  • क्षत्रिय: तलवार, छत्र, हाथी, सिंह

  • वैश्य: तराजू, धन-सम्बंधी चिन्ह

  • शूद्र: हल, युग


प्रथम ईंट का महत्व

पहली ईंट को शुभ मुहूर्त में, पूर्व या ईशान दिशा में रखा जाता है। उस पर विशेष अक्षर उकेरे जाते हैं —
"श", "ष", "स", "ह" और केंद्र में "ॐ"

इस ईंट को रखने से पहले उसमें जड़ी-बूटियाँ, पुष्प, और औषधियाँ रखी जाती हैं। ईंटों के लिए भी लिंग आधारित नियम हैं — जैसे देवताओं के लिए पुरुष ईंटें।


निष्कर्ष

गर्भ-विन्यास केवल नींव नहीं, यह आकाश और पृथ्वी के बीच का एक पुल है। यह विज्ञान और अध्यात्म का सम्मिलन है।
प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र इस बात को गहराई से समझता था कि किसी भी निर्माण की शक्ति उसकी नींव से उपजती है।

Related Stories

Think of this world as a tree. All the trunks, branches, sub-branches, leaves, flowers, fruits, the entire grandeur. N...
For most of us, Rangoli brings the memories of Diwali. However, in South India, it is a daily affair in many homes. They...
Vastu is a vast subject that not only covers the inside of your house but also the temple, Shiv linga, pillars, wate...

Comments (0)

No comments Yet.

Free Subscription