कृष्णा और कृष्णा लीला:

?????? ?? ?????? ????
aadri astrology blog image

योगेश्वर कृष्ण, गोपेश्वर कृष्ण, जगतगुरू कृष्ण, भगवान वासुदेव कृष्ण, द्वारकाधीश कृष्ण। ना जाने कितने नामों से कितनी उपाधियों से अलंकृत किया गया। लेकिन क्या किसी ने कृष्ण को कृष्ण बन कर जानने की कोशिश की? क्या कोई कृष्ण को हृदयंगम कर सका; बस कह दिया गया कि कृष्ण का चरित्र अनुसरण के लिए नहीं सिर्फ सुनने के लिए। क्यों भई? क्या उनके चरित्र को जीवन में नहीं उतारा जा सकता तो फिर उनके अवतरण के क्या मायने ! एक युगपुरुष अपने चरित्र के द्वारा यहीं कोशिश करता है कि कोई एक ही सही उसके चरित्र को जिए। लेकिन कृष्ण का चरित्र भागवताचार्यों ने इतना भ्रामक बना दिया साथ ही यह भी उद्घोष कर दिया कि ना भई ना वे तो परात्पर ब्रह्म, उनके चरित्र को कौन जी सकता। ऐसा कह कर उन्होंने कृष्ण की महानता को कम ही किया। कृष्ण के इतने विराट चरित्र को समझने और अनुसरण करने के लिए आपको महान भावुकता के साथ परम योग की अवधारणा को अपने में आत्मसात करना होगा। मेरे एक छंद की एक लाइन से थोड़ा समझिए यथा -

"निष्ठुर ना माधव सो दूजो बृज मण्डल में माधव सो नेही तिहु काल नहीं दूसरो।"

इसकी व्याख्या यह कि कृष्ण से ज्यादा निष्ठुर कोई इस बृज (बृज से तात्पर्य भू लोक से) में दूसरा नहीं तो उनके जैसा प्रेमी भी यहां दूसरा नहीं। देखिए दोनों विरोधी भाव अपनी पूर्णता लिए। यही एक पूर्ण पुरुष के लक्षण है।जो भी अवस्था होगी वह अपने पूर्णत्व में। वह किसी भी अवस्था में आधा अधूरा नहीं होता। यही परिपूर्ण सिद्ध योगी की पहचान है। वह तीनों गुणों में अवस्थान करता हुआ सारे गुणों के आतीव होता है। जैसा कि भागवताचार्य कहते है श्री राधा उनकी प्रेयसी जो शादीशुदा थी, लेकिन कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पित। मै इस विषय पर नहीं जाना चाहता। क्योंकि वह मिथक है जो आप लोगों ने सुना है उससे बहुत अलग। अभी भ्रम में पड़ जाओगे और आपकी अभी तक की सारी मान्यताएं खंडित हो जाएगी जो मै नहीं चाहता। कृष्ण की इस महानता के पीछे इस ईश्वरत्व के पीछे उनके हृदय में व्याप्त अपार करुणा ही थी। जो उन्हें राधा से वियोग के बाद प्राप्त हुई। वे इतनी रानियों को वरण करने के बाद भी आजन्म राधा को विस्मृत नहीं कर सके। वहीं ईश्वर अंतिम समय में जब बाण से बिंध गया है और देह त्याग की अवस्था है उद्धव से बोलता है कि हे उद्धव तुम वृंदावन जाना और राधा से बोलना कि अब वह मेरा इंतजार ना करे। यह है प्रेम की पराकाष्ठा, और यह है विराट व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पहचान। वह लोक के लिए जीता है उसे समूचे आर्यावर्त की चिंता है। गीता जैसे महान ग्रंथ का उद्बोधन करता है त्याग और तप को प्रतिपादित करता है लेकिन अपने प्रेम को विस्मृत नहीं कर पाता यह उसके हाथ में भी नहीं है। तभी तो प्रेम को ईश्वर का पर्यायवाची कहा गया।

Related Stories

Comments (1 )

Deb Roy Shuchismita

अदभुत कृष्ण वर्णन । जय श्री कृष्ण 🙏

aadri team astrologer kundli

Jai Sri Krishna.

Free Subscription