हम विचार करे कि हम दुखी क्यों है। क्या दुख बाहर से प्रेरित है या हमारे अंदर ही है उसका कारण। वास्तव में आत्मा आंनद स्वरूप है। तभी तो कहा गया चिदानंद रूपम शिवोहम शिवोहम।
हम चिन्मय है यानि अमर, आंनद स्वरूप है और है शिवत्व से ओतप्रोत। मेरा मतलब आत्मतत्व नित्य अविनाशी और अपरिवर्तनीय है। इसमें किंचित भी ना बढ़ाया जा सकता ना ही कम किया जा सकता। हमें उस स्थिति को प्राप्त करना है जो हमारे अंदर वह दृष्टि ला सके जो हमें हमारा मूल स्वरूप दिखा पाए। फिर हमें सुख -दुख क्यों व्यापते है, ये मन की तरंग है जबकि मन का कोई अस्तित्व नहीं, मन आत्मा की ऊपरी परत है जिसमें जीवत्व निहित होता है। लेकिन एक बात हम ना केवल लोकलया में बल्कि परा लोक में भी देखते है वह है आकर्षण। अखिल लोक ब्रह्माण्ड में सर्वत्र ये दिखाई देता है। मैंने गुरु कृपा से बहुत से ऐसे ऊर्ध लोक देखे जहां आकर्षण है। मेरा मतलब, सर्वत्र ये दिखाई पड़ता किसी ना किसी अंश में और हमारे दुख के मूल में भी यही आकर्षण है।
ये आकर्षण है क्यों?
शायद खुद को अधूरा समझने की नासमझी।
ये मिट कैसे पाएगी?
जब हम ये जान ले कि हम पूर्ण है तब।
वह कैसे हो?
योग के द्वारा।
संसार में सर्वत्र विपरीत लिंगी आकर्षण दिखाई देता है। अपनी समझ, सुविधा और समरूपता होने पर दो विपरीत लिंग में आकर्षण सहज हो जाता है और जब उसे यह नहीं मिल पाता तो महान वेदना का सामना करना पड़ता है। ये दोनों ध्रुव हमारे अंदर भी है जिन्हे विसर्ग विंदू कहा जाता है। यदि हम योग के माध्यम से इन दोनों विंदुओ को एकाकार कर ले तो समझिए उस वेदना से सदैव के लिए छुटकारा मिल जाए और फिर हम वेद के रहस्य को भी जान ले क्योंकि वेद वेदना के बाद ही प्रकट होता है। वहीं एक बिंदु शिव के द्वितीय के चांद के ऊपर स्थिति बिंदु है। तब हम समझ सकेंगे कि हमारा आधा आत्म तत्व है कहां।
क्योंकि आत्मा के प्रथम अवतरण पर उसे दो भागों में बांट दिया जाता है इदम यानि स्त्री तत्व और दूसरा अहम यानि पुरुष तत्व। ताउम्र हर व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष अपने अपने आधे भाग की खोज में भटकते रहते और उन्हें कभी उपलब्धि नहीं होती क्योंकि यदि उनका आत्म तत्व मिल जाए तो वे मुक्त हो जाए और हो जाए परिपूर्ण। तो पहले अपने अंदर अपने दोनो ध्रुव मिलाइए और उस रहस्य को पा लीजिए जिससे आप पूर्णता का अहसास कर आप्त काम हो सके और हमेशा एक प्रफुल्लता को प्राप्त हो।
Comments (2 )
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Well explained🙏
Thanks.
आपने अनन्त सुख प्राप्त करने का मार्ग सुझाया है, बहुत सुंदर व्याख्या की है। ॐ नमः शिवाय 🙏
ॐ नमः शिवाय.