
हमारी भारतीय मनीषा अनादिकाल से 'वसुदेव कुटुंबकम् ' की भावना को व्यापक रूप से ना केवल उद्घोष करने वाली बल्कि उसे बर्ताव में लाने वाली रही है। हम विश्वव्यापी परिपेक्ष में सदैव अपनी ज्ञान धारा को स्थापित करते आए है और विश्व की प्रत्येक सभ्यता की श्रेष्ठ बातों को अपनी सनातनी धारा में समाहित भी किया है । क्योंकि हमारी सनातन विचार धारा और सभ्यता कोई उथली और बरसाती नदी, नाला नहीं कि किसी बाहरी सभ्यता के विचारों को समाहित करने से वर्ण शंकर हो जाए बल्कि वह तो महासागर के समान विराट और गहराई लिए है। यदि हम वसुदेव कुटुंबकम् को स्वीकार करते है जो कि सनातन सभ्यता का आधार रही है फिर ये संकुचित और रुग्ण सोच क्यों कि हमें इस नए वर्ष को इसलिए नहीं मानना है क्योंकि ये अंग्रेजी सभ्यता का नव वर्ष है । हमारा नव वर्ष तो विक्रमी संवत् से प्रारंभ होता है। इस विपरीत समय में कोई भी क्षण जो हमें नव चेतना नव उल्लास से जोड़े और उसमें अभिवृद्धि करे क्या नहीं मनाना चाहिए । वैसे भी जीवन की आपाधापी में किंचित समय ही शेष रह गया है जो हमें जीवन के अवसाद से मुक्त रखता हो। फिर ये रुग्ण विचार धारा क्यों? हां , हमें अपने संवत् को पूर्ण सात्विक और श्रेष्ठतम तरीके से मनाना चाहिए लेकिन हमें हर उस अवसर को अपने जीवन में सम्मिलित भी करना है जो हमारे चेहरे पर मुस्कराहट ला सके और हम वह खुशी हर उस व्यक्ति को बांट सकें जो जीवन की निराशा से हार मान कर गहरे अवसाद में चले गए है।
वैसे तो समय निरंतर बहने वाला वह प्रवाह है जिसे कोई खंडित नहीं कर सकता वह काल का अखंड प्रवाह है। और उसकी माप हर स्तर पर अलग अलग है। सिर्फ मानव ने अपनी सुविधा और व्यवस्थित जीवन चर्या के लिए उसे वर्ष महीनों सप्ताह दिन घंटों आदि में खंडित कर लिया है।ये अखंड प्रवाह हमें निरंतर जीवन और मृत्यु के पलड़े में झुलाए रखता है और कभी भी इसके बाहर नहीं निकलने देता। लेकिन जब हम कृपा वसात इसके बाहर हो जाते है अर्थात तुरीय स्थिति में पहुंचते है उस समय हमें उसके अखंड प्रवाह का बोध भी होता है साथ ही उसके विराट अस्तित्व की अनुभूति भी।
हमें हर वह उत्सव उत्साह से मनाना है जो हमारी चेतना को नव ऊर्जा से भर सके और हम जीवन उल्लास को अपनी चेतना की गहराई तक ला सके जिससे हम आह्लाद से सम्पूर्ण चेतना को पूरित कर सके। हम किसी भी स्थिति में संकुचित मानसिकता और घृणा को अपने जीवन में स्थान नहीं दे सकते । हां अपनी सनातन सभ्यता , ऋषि परंपरा को पूरे मनोयोग से अपने जीवन चर्या में उतार सके ये सतत प्रयास है हमारा। सभी आत्म जन को नव वर्ष की शुभकामनाएं एवम् हार्दिक स्नेहाशीष।
जयति अवधूतेश्वर
Comments (1 )
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बहुत बढ़िया लिखा है आपने, जब भी नूतन वर्ष प्रारम्भ होता है बहुत सारे ऐसे मेंसेज आते हैं कि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार है इसलिए हिंदुओं को नहीं मनाना चाहिए। परन्तु हम इस सच को भी झुठला नहीं सकते कि आज सभी देशों में इसी कैलेंडर की मान्यता है। हां यह भी सही है कि अपने धर्म के अनुसार अपने सभी धार्मिक अनुष्ठान, अपने कैलेंडर के अनुसार ही करने चाहिए। दूसरी बात जो आपने लिखी है कि कोई भी घटना जो खुशी प्रदान करे बिना दूसरे को हानि पहुंचाये, उसका पूरा आनंद लेना चाहिए व अपने विचारों को संकुचित न करके विस्तार देना चाहिए, बहुत ही उत्तम विचार है। ॐ नमः शिवाय