कैलाश : एक अतंर्यात्रा - Part 1:

????? : ?? ??????????? - Part 1
aadri astrology blog image

दिल्ली का तीन दिवसीय प्रवास यानि जीवत्व की त्रिगुणों में बद्घ घनीभूत अवस्था। जीव को विभिन्न परीक्षणों से गुजरना पड़ता है जब वह अंतर्यात्रा की तैयारी करता है। स्थूल दृष्टि में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान इस देह का ही है जो हमारी राजधानी है। तीन ग्रंथियां ही तीन दिवसीय परीक्षण और प्रवास है।

जब साधक इनमे उत्तीर्ण हो जाता है तो अंतार्यात्रा का सुभारंभ हो जाता है। और साधक कृतार्थता की ओर अग्रसर हो जाता है। यही वह अवसर है जब हम बहिरंग को अंतरंग से सामंजस्य कर सकते है। एक एक पड़ाव जैसे हमारी अंतर्यात्रा के चक्र वैविध्य। विचारों का विराट समूह ही तो ये साथ का जनमानस है जो मन में कोलाहल और विविध रंगी विचार लाता ही रहता है। दो प्रशाशनिक अधिकारी यानि समानांतर चलने वाली इडा और पिंगला।

कितनी समानता मेरे दोनों अधिकारियों में। वे वास्तव में सूर्य और चन्द्र नाड़ी के प्रतीक। एक उग्र दूसरा बेहद शांत और शीतल।

धारचूला - आधार चक्र यही वह स्थान है जहां से राजपथ यानि कैलाश की यात्रा का आरंभ होता है। कितनी तैयारियां कितनी व्यवस्थाएं फिर भी कुछ भी निश्चित नहीं कि मंजिल मिलेगी भी या नहीं। लेकिन स्क्चा साधक दृढ़ प्रतिज्ञ होता है। गुरु कृपा का आलंबन ले चल पड़ता है अपनी अतंर्यात्रा के लिए।

धारचूला से थोड़ा आगे ही तो है वह दुरूह स्थान जो नजंग से शुरू होता हुआ मालपा की भायभयता को दिखलाता हुआ बुधी तक जाता है। यानि स्वाधिष्ठान चक्र का मार्ग। यही वह क्षेत्र है जिसको पार करना सबसे कठिन लेकिन बुद्धि कौशल और संयम से श्रेष्ठ साधक इसे गुरु कृपा का आश्रय ले पार कर जाता है। इस पड़ाव को पार करने में कितनी मुश्किल आती है ये भुक्तभोगी ही जान सकता है। याद रहे हम काली नदी की धारा के विपरीत चल रहे है। धारा के विपरीत चलना ही पड़ता है। तभी तो धारा का पलट राधा बन जाता है यानि काम की प्रेम में पर्णित होना। छियालेक की छोटी किन्तु कठिन चढ़ाई पर करना जैसे अपनी स्वाद इंद्री को जीत लेना तो आता है एक छोटा सा पड़ाव जब साधक उदर पूर्ति के लिए नहीं सोचता क्योंकि वह मणिपूर चक्र की ओर चल रहा होता है। जो उसे सदा पूर्ण ता प्रदान करती है। हालांकि बीच में बहुत आमोद प्रमोद के अवसर मिलते है। जैसे नाभी गांव का रंगारंग कार्यक्रम लेकिन श्रेष्ठ साधक उसमे उलझते नहीं वे वहां भी कुछ गुप्त की खोज में सक्रिय रहते है जैसे रोंगकोंग गांव की यात्रा।

बस इसके बाद ही यात्रा का वह पड़ाव आयेगा जो कई मायनों में साधक के लिए बहुत विस्मयकारी और चुनौती पूर्ण।

जय अवधूतेश्वर।

Related Stories

Comments (1 )

KUMAR SANJAY

स्थूल देह की कैलाश मानसरोवर यात्रा के साथ अतंर्यात्रा का सामजस्य बतलाकर आपने आपने मन की गहराइयो को छू लिया। बहुत ही उत्तम विचारो द्वारा आपने अतिश्रेष्ठ वर्णन किया है। आपको कोटि कोटि प्र्णाम् ॐ नमः शिवाय🌹🙏

Free Subscription